कोई रिटायर्मेंट क्यों नहीं ?


रिटायरमेंट नहीं, पद छोड़ने को तैयार!
मुझे एक काम सौंपा गया था और वो जब तक पूरा नहीं होता तब तक मेरे रिटायर होने का कोई सवाल ही नहीं उठता.. ..मैं कई बार सोचता हूं कि युवाओं को नेतृत्व लेना चाहिए। लेकिन कब.? यह फैसला कांग्रेस को लेना है। कांग्रेस जिसके लिए भी कहेगी, उसके लिए मुझे जगह खाली करने में बेहद खुशी होगी। यह प्रतिक्रिया है, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की, जो उन्होंने दो अलग-अलग सवालों के जवाब में सोमवार को दी।
 द्वारा जागरण 

        आज जमाना इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा है कि प्रगति तो जैसे पंख पसार कर खुले असमान में उड़ रही है. लेकिन क्या विकास के लिए हमारे युवा उत्तरदायी नहीं हैं जितने कि वृध? हैं, जरूर है; मगर हमारे युवाओं को मौका ही नहीं मिल पा रहा. कारण साफ है, जहाँ देश के उज्जवल भविष्य के लिए युवाओं को होना चाहिए था वहां रिटायर होने वाले हमारे समाज के बुजुर कुर्सी पकडे बठे हैं. और तो और, रिटायर्मेंट कि उम्र बढ़ाने के लिए जूझ रहे हैं. और हमारे देश का कानून पूर्णतया समर्थन भी दे रहा है. देश में बेरोजगारी का एक ये भी महत्वपूर्ण कारण है. प्रकृति का नियम ही है कि रिक्त स्थान कि पूर्ति अगली पीढ़ी से होती है, चाहे वो परिवार में हो या कहीं भी. जब बाप बूढ़ा हो जाता है तो बेटा उसका कार्यभार संभालता है. लेकिन जब बाप ही तैयार ना हो तो क्या किया जाए. 

                नयी युवा पीढ़ी में नया जोश है, जूनून है, नयी उर्जा है, तार्किक शक्ति है और बदलते समय में खुद को ढालने कि छमता है. मगर, बस एक अनुभव कि ही कमी है जो रिटायर होने वाले बुजुर्गों में ज्यादा है. तो क्या अनुभव कोई माँ के पेट से तो लेकर आता है? सब, अनुभव यहीं प्राप्त करते हैं; चाहे बुजुर्ग हों या युवा पीढ़ी. बस, जरूरत है तो सिर्फ मौका देने की; हमारी युवा पीढ़ी कहीं से कमजोर नहीं होगी. और हाँ, अनुभव कि इतनी ही महत्ता है तो इसे परामर्श के रूप में लेना ज्यादा अच्छा रहेगा. हमारी सरकार अनुभवी इंसान को परामर्श हेतु रखें और कार्य प्रगति के लिए युवाओं को आगे आने देन तो कुछ उद्धार हमारे देशा का भी हो.



             अब देश के नेताओं को ही ले लीजिए, घर में नाती-पोते खेलाने की उम्र में भी, कुर्सी का मोह है की ख़तम ही नहीं होता. अभी भी लगे हुए हैं, पता नहीं कौन-कौन सी यात्राएं करने में. मैं ये जानना चाहता हूँ कि क्या देश में युवा कम पड़ गाए हैं या बुजुर्ग ज्यादा हो गाए हैं? अगर देश कि नय्या कि पतवार इन्हीं हाथों में रही तो चाभी कि गुडिया बने हमारे प्रधानमंत्री जैसे लोग कभी रिटायर नहीं होंगे और लाठी के सहारे देश को खुद कि तरह जमीन पे रेंगने को मजबूर करेंगे. 
              

1 टिप्पणियाँ:

abhi ने कहा…

हम्म....

अच्छा...

ह्म्म्म....

वैसे दोनों के फोटू मस्त लगाया है तुमने.... ;)

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