बिहार एक बदलता स्वरुप, जिसका पूरा-पूरा श्रेय बिहार के आदरणीय मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार जी को जाता है. ये उन्ही की परिकल्पना है जो की मानसिक और वैचारिक रूप से पिछड़े हुए बिहार की एक नयी तस्वीर हम बिहार वासियों और पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रही है. इसके लिए मैं उनका बहुत-बहुत आभारी हूँ. वैसे तो बिहार का बदलता स्वरुप किसी से छिपा हुआ नहीं है और अब हम बिहारी कहलाने में गर्व महसूस करते हैं. और ये आशा करते हैं की अगर नितीश सरकार को भी लालू सरकार की ही तरह 15 साल की सत्ता मिल जाये तो इसमें तनिक भी संदेह नहीं है की इससे बिहार का उद्धार ही होगा. और बिहार भी महानगरों की गिनती में शामिल होगा.
खैर ! ये तो बाद की बात है. अभी, मैं आज बात करने जा रहा हूँ, बिहार पुलिस के कर वसूली के नए अंदाज की. अगर आप नहीं जानते हैं तो बता दूं, बिहार पुलिस ने अपनी आधुनिकता दर्शाने और अपराध जगत पर शिकंजा लगाने हेतु कुछ पदाधिकारियों को मोबाइल पुलिस बना कर उनके हाथों में बाइक(अपाचे) थमा दी है साथ ही 20 लीटर पेट्रोल की भी सुविधा दी है. मतलब, कुछ भी अपने जेब से नहीं लगाना है; चाहे जितना इस पुश्तैनी जायदाद का इस्तेमाल करो. इसका इस्तेमाल सरकारी तौर पर तो, सिर्फ कहने के लिए; ये अपने-अपने एरिया में गश्त लगा कर करते है. मगर, गैर-सरकारी इस्तेमाल की तो कोई सीमा ही नहीं है, क्या-क्या बताऊँ?
मैंने ऐसा कोई पहली बार नहीं देखा है; मैं अपने एक मित्र "अमर" के साथ पटना के एक बहुचर्चित इलाके "डाकबंगला" के "मौर्यलोक काम्प्लेक्स" में बात कर रहा था. उस समय करीब दिन के 1-1.30 बजे होंगे. वहीँ एक जूस कॉर्नर(ठेले) पर दो हट्टे-कट्टे मोबाइल पुलिस के जवान (अपाचे से) आए और जूस बनाने को बोले. आराम से, अपना पुश्तैनी समान समझ कर जूस पिए और बिना पैसे दिए चलते बने. उस समय मेरे पास कैमरा नहीं था, अथवा मैं आपके सामने इस सच्चाई को एक नए रूप में प्रस्तुत करता. भैया पुलिस हैं, तो पैसे किस बात के दें ? क्या, पैसे देने के लिए ही हमें पुलिस बनाया गया है? पुलिस का काम पैसे लेना होता है देना नहीं !! या टेबल के ऊपर से लें या फिर निचे से. और अब तो पुलिस हैं; जो चाहेंगे वो करेंगे. शायद, ऐसे ही कुछ विचार उन दोनों की मानसिकता हों. बस इसी बात की तो गर्मी होती है. और सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि उनके वहां आने से 5 मिनट पहले नितीश जी का कारवां वहीँ से निकला था. ऐसा तो कई बार होता है. अभी कुछ ही दिनों पहले, यहाँ इसी तरह के मोबाइल चालकों के एक दस्ते पे लड़कियों से छेड़खानी करने की शिकायत आयी थी. कई बार, इन्ही लोगों के द्वारा महिलाओं से चेन छीनने की भी घटनाएँ हुई है. ये सही ही कहा गया है कि आज पुलिस, चाहे किसी भी राज्य की हो; वर्दी वाले गुंडे से कम नहीं है.
दिक्कत क्या है? दिक्कत सरकार में नहीं, उनके नुमाइंदों में है. एक सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ सरकारी काम-काज में होना चाहिए इसके लिए गाड़ी कार्यालय काल में कार्यालय से निकली जाए और शाम को कार्यकाल समाप्त करके घर जाते वक़्त कार्यालय में लगाई जाए. और जहाँ तक गश्त की बात है, तो वो जीप से हो सकती है. क्योकि, एक जीप में; कितनो के परिवार को अधिकारिक सुख मिल पाएगा?
आधुनिकीकरण, काफी जरूरी और अच्छी बात है. अगर, इसका इस्तेमाल सही ढंग से किया जाए तो; जो की नहीं ही होता है. अब उपरोक्त कृत्य का बुरा प्रभाव तो अधीनस्थ सरकार पे ही पड़ेगा. लोगों और छोटे व्यवसाइयों के मन में सरकार के लिए गलत भावना का जन्म होगा जिसका खामियाजा सरकार को चुनाव में उठाना पड़ेगा और फिर शायद बिहार वहीँ होगा जहाँ 15 साल पहले था.
क्यूँ ,आप क्या कहते हैं ? अपनी चौपाल में .
2 टिप्पणियाँ:
एक जगह जख्म हो तो बताए. पुलिस का काम उगाही करना है,
आप सही कह रहे हैं अरुण जी,
धन्यवाद टिपण्णी देने के लिए
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