क्या भारतीय संविधान में पूर्णतया संशोधन कि आवश्यकता है ?



                 वो कहते हैं ना समय के साथ-साथ हर चीज़ में बदलाव जरूरी है. जो समय के साथ नहीं बदलते वो विलुप्त हो जाते हैं. समय बदलता जा रहा है और उसी के साथ-साथ लगभग हर चीज़ भी; मगर संविधान कि बात करें, तो जब भी जितनी जरूरत होती है उतना ही कई सालों न्यायालय के चक्कर लगाने के बाद बदला जाता है. हमें अपने ही देश के संविधान में आधुनिकीकरण या नवीनीकरण के लिए सालों जूझना पड़ता है.

                         असल बात तो ये है कि, जब डॉ. बाबा साहेब के द्वारा हमारा संविधान प्रतिपादित हुआ था; तब के भारत और अब के भारत में काफी अंतर आया है. काफी उन्नति के मोड़ आए हैं इन सालों में. अतः, मेरी समझ से अब भारतीय संविधान को पूर्णतया नविन और आधुनिक करना जरूरी है. क्योंकि आज भी इसके पुराने दस्तावेजों का खामियाजा कई जाती-वर्गों को भुगतना पड़ रहा है. उसी में से, अगर कोई विशेष हठी निकलता है जो किसी एक धारा को संशोधित करवा लेता है. जिसका सबसे बड़ा उदहारण है, धारा 377 .  खैर ! ये सब अपने-अपने सोच कि बात है; आज भी इस विषय पर कई बुद्धिजीवी "ओल्ड इज गोल्ड" कि निति लगाये बैठे हैं. एक बड़ी ही साधारण सी बात कहना चाहूँगा; लगभग हर समान में एक्सपाईरी डेट होती है और उसके हम बाद उसे इस्तेमाल नहीं करते. मतलब, पुनः इस्तेमाल के लिए; उसका नवीनीकरण करना पड़ता है. तो क्या हमारा संविधान चिरस्थायी है ?

                         आज जो भी ये SC/ST को विशेष दर्जा दिया जा रहा है ये सब भी उन पुराने संवैधानिक नियमों कि ही देन हैं. जरा सोंचिये, आज से 60 साल पहले कि स्थिति ऐसी नहीं थी; तब ना तो महिला वर्ग ही और ना ही पिछड़े वर्ग ही ऐसी विकसित थे जैसे कि अब हैं. तब तो ये संविधान जरूरी था. मगर, अब क्या ? आज भी अगर ऐसा ही चलता रहा तो शायद ये मान लेना चाहिए कि एक मनघडंत षड़यंत्र के द्वारा उच्चा जातिवर्गों का ही शोषण किया जा रहा है, और वो भी संवैधानिक तौर पर.

                        अभी तो मैंने बस चंद धागे ही निकले हैं; पूरी बखिया तो उधेड़ी ही नहीं. सोंचिये, बस एक-दो मुद्दे उठाने पर लेख इतना बड़ा हो गया तो पुरे विषय पे विचार करने में कितने साल गुजर जायेंगे; और तब अगर संशोधन कि प्रक्रिया शुरू भी हुई तो कितने वर्षों में संशोधित होगी. उस समय तक, शायद हमरा-आपका जमाना ही नहीं होगा; और इस लड़ाई का फायदा हमें नहीं होगा. बस यही सोंच कर शायद किसी ने आज तक कोई कदम ही नहीं उठाया, क्या आप कदम बढ़ाना चाहेंगे अपनी चौपाल से ....

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