आज बिहार जहाँ देश की ताकत बनने जा रहा है वहीँ कुछ कारस्तानियाँ ऐसी भी हैं जो बिहार को शर्मसार और बिहार वासियों को बदनाम करने पर तुली हैं. घटना कुछ दिनों पुरानी हैं, पक्ष और विपक्ष का मुद्दा तू-तू, मैं-मैं से शुरू हो कर हाथा-पाई तक जा पहुंचा. और आलम ये हुआ कि पक्ष, विपक्ष को दोषी कह रहा है और विपक्ष,पक्ष को. मगर, सही माईने में जिम्मेवार कौन है, आइये जरा इसपर भी विचार करें. बात है बड़ी विचारनीय, जहाँ दुनिया ये चाहती है कि बिहार आगे बढ़े वहीँ हमारे ही नेता बिहार का नाम मटिया-मेट करने पर अमादा हैं. मेरा एक आग्रह इस ब्लॉग को पढ़ने वाले हर व्यक्ति-विशेष से है कि इस मुद्दे पर एक नागरिक कि हैसियत से कृपया अपनी राय जरूर दें.
जैसा कि मेरा मानना है, अपनी ऐसी स्थिति के कई कारण हैं; जिन्हें मैं एक-एक कर आपके सामने प्रस्तुत करूंगा : -
1 ] हमारा अपने मताधिकार का पूर्णतया प्रयोग ना करना :-
हम एक आम जनता, हमेशा से ही अपने प्रदेश का भला चाहते हैं. ऐसा तो हर नागरिक सोंचता ही है कि उसका प्रदेश का नाम हो और वो अपने प्रदेश का नाम लेने में गर्व महसूस करे; चाहे वो इसके लिए कोई भी कदम उठाये या नहीं. जनता का काम तब से ही शुरू हो जाता है जब से उनके वोट डालने कि बारी आती है. मगर, अफ़सोस कि बात ये है कि अनपढ़ तो अनपढ़, यहाँ पढ़े लिखे लोग भी वोट डालने नहीं जाते. और अपनी राय सरकारी के किये गए काम कि कमी निकलने में देते रहते हैं. क्योंकि, गलतियाँ खोजने सबको आती हैं, मगर एक कदम कोई नहीं उठाना चाहता. एक सर्वे के अनुसार, पिछले चुनाव में सिर्फ पटना में 19% ही वोट पड़े. कारण :-
जान का भय, गोली-बन्दुक या फिर बूथ-कैप्चरिंग कि आशंका. उपाय :- * आज भारत के कानून में एक इस तरह से वोट डालने का प्रावधान भी है जहाँ आपका वोट जीरो वोट कहलायेगा. आप वोट तो डालेंगे मगर लिस्ट में आपका उम्मीदवार ना होने पे आपका वोट किसीको नहीं जाएगा और इसकी गिनती भी होगी. * वोट डालना हर सरकारी कर्मचारी के लिए चाहे वो कार्यरत,निष्काषित,अवकाश पे या फिर रिटायर क्यों ना हो; अनिवार्य होना चाहिए. और इसके उल्लंघन पे उचित हर्जाना लगाना चाहिए. क्योंकि पैसे कि भाषा जल्दी समझ में आती है. * मतदान के दिन को किसी प्रकार का अवकाश नहीं होना चाहिए. 2 ] हमारे अधिकारों में जन-प्रतिनिधियों के अधिकारों को वापस लेने का अधिकार का होना : -
जैसा कि हम सभी जानते हैं, जब भी जनता अपने प्रतिनिधियों को निर्वाचित करती है तब वे लाइफ टाइम रिचार्ज कूपन कि तरह हमेशा विधानसभा में पड़े रहते हैं. और अपना बोल-बाला बनाये रखते हैं. उपाय : -
इसलिए, जनता को मतदान के अधिकार के साथ-साथ जरूरत पड़ने पर प्रतिनिधियों के अधिकार वापस लेने का अधिकार भी होना चाहिए. ताकि जिस तरह चुनाव के द्वारा हम इन्हें चुनकर सत्ता कि कुर्सी पे बैठाते हैं; जरूरत पड़ने पर धक्का देकर निचे भी गिरा सकें.
3 ] जन-प्रतिनिधियों के द्वारा राष्ट्रीय संपत्ति के नुकसान का खामियाजा : -
हमारे द्वारा चुने गए जन-प्रतिनिधियों के द्वारा किये गए राष्ट्रीय संपत्ति के नुकसान का खामियाजा उन्हीं के वेतन से किया जाये और जन-प्रतिनिधि के रूप में ऐसी व्यंगास्पद हरकत के दंड स्वरूप 3-6 महीनों के वेतन का आधा हिस्सा रद्द कर दिया जाए, जिसका पूर्ण ब्यौरा दिया जाए और इसे मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री रहत कोष में बढ़-पीड़ितों के लिए जमा करवाया जाए.
4 ] राष्ट्रीय संपत्ति के व्यय का पूर्ण विवरण, अर्ध-वार्षिक स्तर दिया जाये : -
आज विपक्ष के नेता पक्ष और सत्ताधीन नेताओं पे टिका-टिपण्णी कर रही है कि 11,000 करोड़ का घोटाला हुआ है, हुआ है या नहीं. ये मुद्दा गरमाया हुआ इसलिए है क्योंकि उन्हें(विपक्ष के नेता) निवाला नहीं मिलने कि चिढ़ा है. ऐसा अब ना के बराबर हो और हमारी देश कि जनता कि मेहनत कि कमाई का पूर्ण रूप से इस्तेमा देश के ही विकास में हो; नेताओं के नहीं. इसलिए राष्ट्रीय संपत्ति के व्यय का पूरा ब्यौरा अर्ध-वार्षिक स्तर पर दिया जाए.
बस, मेरे हिसाब से तो यही कुछ कारगर कदम होंगे जो इस देश कि लाज इन सत्ता-रूढ़ नेताओं से बचा सकेंगे. और अगर आपके पास ऐसी कोई भी राय हो जो आप एक नागरिक होने के प्रति सरकार के लिए देना चाहें तो इसमें आपका हार्दिक स्वागत है.
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बचपन
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माँ की गोद, पापा के कंधे;
आज याद आते हैं, बचपन के वो लम्हे.
रोते हुए सो जाना, खुद से बातें करते हुए खो जाना.
वो माँ का आवाज लगाना,
और खाना अपने हाथों से...
1 टिप्पणियाँ:
आपने अपने छोटे नटखट प्यारे से भाई के बारे में बहुत रोचक विवरण दिया है...आपका लेखन बहुत आनंद दायी है...याने पढ़ कर आनंद आ गया...
नीरज
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