पचता नहीं है : ज्ञान और धन

                          इंसान एक ऐसा सामाजिक प्राणी है जो हमेशा से ही खुद को सबसे अलग और उत्तम साबित करने में सबकुछ गवां देना ज्यादा बेहतर समझता है. इसमें बस, दो चीजें गौर में आतीं हैं. पहला है, ज्ञान और दूसरा है धन. बड़ा ही अनोखा है होता है इन्सान से इनका रिश्ता. क्योंकि, आपको सबसे या भीड़ से अलग रखने का काम तो येही करता है. और, ज्यादातर लोग खुद को इसीमे आगे रखने और साबित करने की भीड़ में लगे रहते हैं. इसका पर्याय क्या होता है, सोचिये........


                    इसका पर्याय बस यही होता है की आपके पास ज्यादा हो गया ज्ञान या धन, पचता नहीं है और ना चाहते हुए या अनजाने में ही बहार आ ही जाता है. कभी खुद को बड़ा दिखाने में और कभी खुद को किसी से [सामने वाले से] अलग दिखाने में. आपके जीवनयापन और बोल-चाल के तरीके में बदलाव आ ही जाता है. क्या कीजिएगा. यही होता है. और बस, यही एक रूप लेता है घमंड का. खैर इससे क्या फरक पड़ता है, दुनिया जो सोंचे. मगर, क्या आप जानते हैं की फरक पड़ता है. आपके अस्तित्व और नजरिये में फरक पड़ता है. और लोग इसी वजह से आपसे अलग होते जाते हैं और कुछ स्वार्थी लोग जुड़ते चले जाते हैं. जो आपको आपकी बनायीं हुई घमंड की दुनिया में जीने के लिए मजबूर करते हैं. और आप इसीको अपना रुतबा समझते हैं. और आप चाह कर भी इससे दूर नहीं हो सकते या होना ही नहीं चाहते. दिन-दुनी-रात-चौगुनी रफ़्तार से बढ़ता ये ज्ञान या धन आपको एक साधारण इन्सान की तरह जीने ही नहीं देता है. और शायद, आप खुद ही साधारण इन्सान की तरह जीना नहीं चाहते हैं.

2 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari ने कहा…

बिल्कुल सही कहा!!

वाणी गीत ने कहा…

पचता नहीं है ज्ञान और धन ...ज्यादा हो तो ...
सत्य वचन...!!

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