आज फादर्स डे है. यूँ तो, ये पश्चिमी समाज की देन है. मगर, हम किसी भी धार्मिक और गैर-धार्मिक त्योहारों के मानाने में ,क्या पीछे हटते है? फादर्स डे, मदर्स डे वगैरा वगैरा. काम-से-काम, इसी बहाने हम अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञता जाहिर तो कर लेते हैं, तो इसमें बुरा ही क्या है?
आज, मैं फिर से आपकी सेवा में हाजिर हूँ, कुछ कविताओं का सार लेकर. आज मैं अपनी कोई नयी कविता प्रस्तुत नहीं करूंगा, इसके लिए क्षमा कीजिएगा. मैं, आज अपनी एक कविता जिसे मैंने 1 May 2010 को 9th Dimension's Base पर प्रकाशित किया था; उसे ही दुबारा प्रकाशित करना चाहूँगा. क्योंकि, फादर्स डे पर हर पिता को समर्पित एक यही कविता है जो ना कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है और मुझे बहुत पसंद है. शायद, आपको भी पसंद आए...........
कृपया, कविता के लिए इस लिंक को क्लिक करें........
http://vkashyaps.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
धन्यवाद.......
आपका अपना,
विशाल कश्यप.
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