पचता नहीं है : ज्ञान और धन

                          इंसान एक ऐसा सामाजिक प्राणी है जो हमेशा से ही खुद को सबसे अलग और उत्तम साबित करने में सबकुछ गवां देना ज्यादा बेहतर समझता है. इसमें बस, दो चीजें गौर में आतीं हैं. पहला है, ज्ञान और दूसरा है धन. बड़ा ही अनोखा है होता है इन्सान से इनका रिश्ता. क्योंकि, आपको सबसे या भीड़ से अलग रखने का काम तो येही करता है. और, ज्यादातर लोग खुद को इसीमे आगे रखने और साबित करने की भीड़ में लगे रहते हैं. इसका पर्याय क्या होता है, सोचिये........


                    इसका पर्याय बस यही होता है की आपके पास ज्यादा हो गया ज्ञान या धन, पचता नहीं है और ना चाहते हुए या अनजाने में ही बहार आ ही जाता है. कभी खुद को बड़ा दिखाने में और कभी खुद को किसी से [सामने वाले से] अलग दिखाने में. आपके जीवनयापन और बोल-चाल के तरीके में बदलाव आ ही जाता है. क्या कीजिएगा. यही होता है. और बस, यही एक रूप लेता है घमंड का. खैर इससे क्या फरक पड़ता है, दुनिया जो सोंचे. मगर, क्या आप जानते हैं की फरक पड़ता है. आपके अस्तित्व और नजरिये में फरक पड़ता है. और लोग इसी वजह से आपसे अलग होते जाते हैं और कुछ स्वार्थी लोग जुड़ते चले जाते हैं. जो आपको आपकी बनायीं हुई घमंड की दुनिया में जीने के लिए मजबूर करते हैं. और आप इसीको अपना रुतबा समझते हैं. और आप चाह कर भी इससे दूर नहीं हो सकते या होना ही नहीं चाहते. दिन-दुनी-रात-चौगुनी रफ़्तार से बढ़ता ये ज्ञान या धन आपको एक साधारण इन्सान की तरह जीने ही नहीं देता है. और शायद, आप खुद ही साधारण इन्सान की तरह जीना नहीं चाहते हैं.

फादर्स डे की बहुत बहुत बधाइयाँ

दोस्तों,
आज फादर्स डे है. यूँ तो, ये पश्चिमी समाज की देन है. मगर, हम किसी भी धार्मिक और गैर-धार्मिक त्योहारों के मानाने में ,क्या पीछे हटते है? फादर्स डे, मदर्स डे वगैरा वगैरा. काम-से-काम, इसी बहाने हम अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञता जाहिर तो कर लेते हैं, तो इसमें बुरा ही क्या है?



आज, मैं फिर से आपकी सेवा में हाजिर हूँ, कुछ कविताओं का सार लेकर. आज मैं अपनी कोई नयी कविता प्रस्तुत नहीं करूंगा, इसके लिए क्षमा कीजिएगा. मैं, आज अपनी एक कविता जिसे मैंने 1 May 2010 को 9th Dimension's Base पर प्रकाशित किया था; उसे ही दुबारा प्रकाशित करना चाहूँगा. क्योंकि, फादर्स डे पर हर पिता को समर्पित एक यही कविता है जो ना कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है और मुझे बहुत पसंद है. शायद, आपको भी पसंद आए...........

कृपया, कविता के लिए इस लिंक को क्लिक करें........
http://vkashyaps.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

धन्यवाद.......
आपका अपना,
विशाल कश्यप. 
 

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