एक आग्रह

 प्रिय मित्रों,
मैंने कुछ दिनों से एक भी ब्लॉग पोस्ट नहीं किया है और मुझे ऐसा लगता है कि कहीं आप मेरे इस वर्ताव से नाराज होंगे? इसीलिए मैं आप सबको ये सूचित करना चाहता हूँ कि ना ही मैंने ब्लॉग लिखना बंद किया है और ना ही मैं लिख पाने में असमर्थ हूँ. चुकि आप सभी जानते हैं कि कुछ लिखने के लिए समय कि आवश्यकता होती है और मुझे लगभग जून के 20 तारीख तक कि व्यस्तता है. बस, यही एक कारण है कि मैं ब्लॉग पे समय नहीं दे पा रहा हूँ. मुझे आशा है कि आप मेरे इस कृत्य से नाराज नहीं होंगे और मेरा पूर्ण समर्थन करेंगे.
                       मेरा ये आग्रह है, आप सब से कि कृपया कुछ दिनों कि व्यस्तता के कारण जो मैं ब्लॉग को समय नहीं दे पा रहा हूँ इसके लिए कृपया मुझे क्षमा करेंगे. समय मिलने पे मैं फिर, 20-25 जून से आपके समक्ष हाजिर हो जाऊंगा. तब तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए.
धन्यवाद.

आपके समर्थन कि आशा में.....
आपका अपना,
विशाल कश्यप

कोई रिटायर्मेंट क्यों नहीं ?


रिटायरमेंट नहीं, पद छोड़ने को तैयार!
मुझे एक काम सौंपा गया था और वो जब तक पूरा नहीं होता तब तक मेरे रिटायर होने का कोई सवाल ही नहीं उठता.. ..मैं कई बार सोचता हूं कि युवाओं को नेतृत्व लेना चाहिए। लेकिन कब.? यह फैसला कांग्रेस को लेना है। कांग्रेस जिसके लिए भी कहेगी, उसके लिए मुझे जगह खाली करने में बेहद खुशी होगी। यह प्रतिक्रिया है, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की, जो उन्होंने दो अलग-अलग सवालों के जवाब में सोमवार को दी।
 द्वारा जागरण 

        आज जमाना इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा है कि प्रगति तो जैसे पंख पसार कर खुले असमान में उड़ रही है. लेकिन क्या विकास के लिए हमारे युवा उत्तरदायी नहीं हैं जितने कि वृध? हैं, जरूर है; मगर हमारे युवाओं को मौका ही नहीं मिल पा रहा. कारण साफ है, जहाँ देश के उज्जवल भविष्य के लिए युवाओं को होना चाहिए था वहां रिटायर होने वाले हमारे समाज के बुजुर कुर्सी पकडे बठे हैं. और तो और, रिटायर्मेंट कि उम्र बढ़ाने के लिए जूझ रहे हैं. और हमारे देश का कानून पूर्णतया समर्थन भी दे रहा है. देश में बेरोजगारी का एक ये भी महत्वपूर्ण कारण है. प्रकृति का नियम ही है कि रिक्त स्थान कि पूर्ति अगली पीढ़ी से होती है, चाहे वो परिवार में हो या कहीं भी. जब बाप बूढ़ा हो जाता है तो बेटा उसका कार्यभार संभालता है. लेकिन जब बाप ही तैयार ना हो तो क्या किया जाए. 

                नयी युवा पीढ़ी में नया जोश है, जूनून है, नयी उर्जा है, तार्किक शक्ति है और बदलते समय में खुद को ढालने कि छमता है. मगर, बस एक अनुभव कि ही कमी है जो रिटायर होने वाले बुजुर्गों में ज्यादा है. तो क्या अनुभव कोई माँ के पेट से तो लेकर आता है? सब, अनुभव यहीं प्राप्त करते हैं; चाहे बुजुर्ग हों या युवा पीढ़ी. बस, जरूरत है तो सिर्फ मौका देने की; हमारी युवा पीढ़ी कहीं से कमजोर नहीं होगी. और हाँ, अनुभव कि इतनी ही महत्ता है तो इसे परामर्श के रूप में लेना ज्यादा अच्छा रहेगा. हमारी सरकार अनुभवी इंसान को परामर्श हेतु रखें और कार्य प्रगति के लिए युवाओं को आगे आने देन तो कुछ उद्धार हमारे देशा का भी हो.



             अब देश के नेताओं को ही ले लीजिए, घर में नाती-पोते खेलाने की उम्र में भी, कुर्सी का मोह है की ख़तम ही नहीं होता. अभी भी लगे हुए हैं, पता नहीं कौन-कौन सी यात्राएं करने में. मैं ये जानना चाहता हूँ कि क्या देश में युवा कम पड़ गाए हैं या बुजुर्ग ज्यादा हो गाए हैं? अगर देश कि नय्या कि पतवार इन्हीं हाथों में रही तो चाभी कि गुडिया बने हमारे प्रधानमंत्री जैसे लोग कभी रिटायर नहीं होंगे और लाठी के सहारे देश को खुद कि तरह जमीन पे रेंगने को मजबूर करेंगे. 
              

पुरुष से महिला बना दिया


                        ज मैं बात करने जा रहा हूँ भारतीय चुनाव आयोग के सहयोग कि जो मुझे मिली है, और शायद ही किसी को इतनी आसानी से और मुफ्त में मिलती है. मैं बात कर रहा हूँ चुनाव आयोग के द्वारा दिए गाए पहचान पत्र की. बड़े ही अरमानों के साथ मैंने भी अपना नाम वोटरों की लिस्ट में जुड़वाया. और अन्तो गत्वा वो समय आ ही गया जब मेरा फोटो लिया गया पचन पत्र बनाने हेतु. कुछ समय बीते, मैंने भी शीलता से इन्तेजार किया और फिर मुझे मिला मेरा पहचान पत्र. जो ये साबित करता की मैं अब बालिग़ हूँ और अपना वोट डालने के लिए पूरी तरह सही हूँ.

                      जब मेरा पहचान पत्र मिला तो मैंने काफी आशा से उसे देखा. "हैं! ये क्या मेरे पहचान पत्र ने मेरी पहचान ही बदल दी है....., मुझे पुरुष से महिला बना दिया......." लिंग परिवर्तन के ऑपरेशन के बारे में मैंने तो सुना ही था. मगर ये बिना ऑपरेशन का लिंग परिवर्तन पहली बार देख रहा हूँ. क्या बताऊँ कैसा-कैसा महसूस कर रहा था मैं. बताइए तो! ऐसा भी कहीं होता है. एक अजीब सा व्यंग मेरे मन में आ रहा था कि चलो कोई बात नहीं सरकार ने मुझे महिला बना ही दिया है; और अब तो ये सत्यापित भी होता है कि सरकारी रूप से मैं महिला हूँ. तो मुझे महिलाओं के सारे आरक्षण मिलने चाहियें. "है कि नहीं?" और ये सारी सुविधाएँ मुझ अबला को भी मिलनी चाहियें जो एक सबला को मिलती हैं. "हा...हा.... अच्छा है! बिना किसी खर्च के सरकार का इतना परोपकार.....वाह!".

                       अब मैंने सोचा कि चलो एक बार तो सरकारी बाबु से मिलके अपनी समस्या का समाधान मांगता हूँ. कड़ी धुप में ये नयी-नवेली महिला, पुरुष परिधान में अपनी फरियाद लेकर सरकारी दफ्तर गयी. "वहां क्या हुआ ये....... कहते हुए भी शर्म आती है". मुझसे ठिठोली हुई. लोगों ने कहा -  "भाई जी, जब बेहेन जी बन ही गाए हैं तो इसका भी मजा ले लीजिए". मैंने मन में सोचा - "क्या मजा लूं, नासपिटों? जीवन का सारा सिस्टम बदल डाला और कहते हो मजा लूं." ये 2008-09 कि बात है. एक वो दिन था और एक आज है, करीब 1/2-2 साल हो गाए और आज भी मैं सरकारी रूप से महिला हूँ और पुरुष बनने को बेचैन हूँ. सोचा आप सब को अपनी आप-बीती सुनाऊंगा तो कुछ मन हल्का हो जाएगा. ठीक हैं! मैं महिला हूँ, मगर इसपे हंसने से क्या फायदा.

क्या भारतीय संविधान में पूर्णतया संशोधन कि आवश्यकता है ?



                 वो कहते हैं ना समय के साथ-साथ हर चीज़ में बदलाव जरूरी है. जो समय के साथ नहीं बदलते वो विलुप्त हो जाते हैं. समय बदलता जा रहा है और उसी के साथ-साथ लगभग हर चीज़ भी; मगर संविधान कि बात करें, तो जब भी जितनी जरूरत होती है उतना ही कई सालों न्यायालय के चक्कर लगाने के बाद बदला जाता है. हमें अपने ही देश के संविधान में आधुनिकीकरण या नवीनीकरण के लिए सालों जूझना पड़ता है.

                         असल बात तो ये है कि, जब डॉ. बाबा साहेब के द्वारा हमारा संविधान प्रतिपादित हुआ था; तब के भारत और अब के भारत में काफी अंतर आया है. काफी उन्नति के मोड़ आए हैं इन सालों में. अतः, मेरी समझ से अब भारतीय संविधान को पूर्णतया नविन और आधुनिक करना जरूरी है. क्योंकि आज भी इसके पुराने दस्तावेजों का खामियाजा कई जाती-वर्गों को भुगतना पड़ रहा है. उसी में से, अगर कोई विशेष हठी निकलता है जो किसी एक धारा को संशोधित करवा लेता है. जिसका सबसे बड़ा उदहारण है, धारा 377 .  खैर ! ये सब अपने-अपने सोच कि बात है; आज भी इस विषय पर कई बुद्धिजीवी "ओल्ड इज गोल्ड" कि निति लगाये बैठे हैं. एक बड़ी ही साधारण सी बात कहना चाहूँगा; लगभग हर समान में एक्सपाईरी डेट होती है और उसके हम बाद उसे इस्तेमाल नहीं करते. मतलब, पुनः इस्तेमाल के लिए; उसका नवीनीकरण करना पड़ता है. तो क्या हमारा संविधान चिरस्थायी है ?

                         आज जो भी ये SC/ST को विशेष दर्जा दिया जा रहा है ये सब भी उन पुराने संवैधानिक नियमों कि ही देन हैं. जरा सोंचिये, आज से 60 साल पहले कि स्थिति ऐसी नहीं थी; तब ना तो महिला वर्ग ही और ना ही पिछड़े वर्ग ही ऐसी विकसित थे जैसे कि अब हैं. तब तो ये संविधान जरूरी था. मगर, अब क्या ? आज भी अगर ऐसा ही चलता रहा तो शायद ये मान लेना चाहिए कि एक मनघडंत षड़यंत्र के द्वारा उच्चा जातिवर्गों का ही शोषण किया जा रहा है, और वो भी संवैधानिक तौर पर.

                        अभी तो मैंने बस चंद धागे ही निकले हैं; पूरी बखिया तो उधेड़ी ही नहीं. सोंचिये, बस एक-दो मुद्दे उठाने पर लेख इतना बड़ा हो गया तो पुरे विषय पे विचार करने में कितने साल गुजर जायेंगे; और तब अगर संशोधन कि प्रक्रिया शुरू भी हुई तो कितने वर्षों में संशोधित होगी. उस समय तक, शायद हमरा-आपका जमाना ही नहीं होगा; और इस लड़ाई का फायदा हमें नहीं होगा. बस यही सोंच कर शायद किसी ने आज तक कोई कदम ही नहीं उठाया, क्या आप कदम बढ़ाना चाहेंगे अपनी चौपाल से ....

ममता बनर्जी का कोलकाता प्रेम

                  
                           रेल मंत्री ममता बनर्जी द्वारा कोलकाता से अपने मंत्रालय का काम काज चलाने को जायज ठहराने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। भाजपा ने उनकी कड़ी आलोचना करते हुए मंगलवार को कहा कि यह मामला संप्रग सरकार के मंत्रियों की अनुशासनहीनता और प्रधानमंत्री का उन पर नियंत्रण नहीं होने का सूचक है। जबकि कांग्रेस ममता के बचाव में उतर आई है और उसने रेल मंत्री की कार्यशैली को सही ठहराया है। आगामी नगर निकाय चुनावों के मद्देनजर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों का प्रचार करते हुए सोमवार रात एक सार्वजनिक सभा में ममता ने कहा, दिल्ली मेरा घर नहीं है। जब संसद का सत्र नहीं चल रहा है तो दिल्ली में मुझे क्यों ठहरना चाहिए ? कोलकाता मेरा घर है। वह आए दिन चुनावी सभाओं में भाजपा को माकपा की बी टीम बता रही हैं। इससे भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ रही है। ममता को कोलकाता नगर निगम समेत 81 पालिकाओं में भाजपा की मौजूदगी सुहा नहीं रही है। प्रदेश भाजपा के महासचिव शमिक भट्टाचार्य ने कहा कि कभी ममता कांग्रेस को माकपा की बी टीम कहती थीं। यदि बंगाल में इन्हीं बयानों से परिवर्तन आना है तो आमलोगों को अभी से सचेत रहने की जरूरत है। भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने नई दिल्ली संवाददाताओं से कहा, संप्रग के कुछ मंत्रियों का आचरण ऐसा है कि वे संसद के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। वे दिल्ली से 1500 या 1000 किलोमीटर दूर से अपने मंत्रालय चला रहे हैं और संसद सत्र के दौरान अपने मंत्रालयों से संबंधित सवालों का जवाब देने तक के लिए उपस्थित नहीं रहते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ मंत्री ऐसे भी हैं जो दूसरे मंत्रियों के काम काज पर लगातार टिप्पणियां करते रहते हैं तो कुछ दूसरे देश की भूमि से अन्य मंत्रालयों के रुख की आलोचना करते हैं। जेटली ने कहा कि यह सब दर्शाता है कि एक ओर संप्रग के कुछ मंत्री अनुशासनहीन हैं और प्रधानमंत्री उन्हें अनुशासित करने में सक्षम नहीं हैं। जबकि कांग्रेस ने कहा कि वह अपने मंत्रालय की अनदेखी नहीं कर रही हैं। पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने यहां संवाददाताओं से कहा, वह एक हद तक सही हैं। वह कोलकाता से सांसद हैं और पश्चिम बंगाल की नेता हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह अपने मंत्रालय की अनदेखी कर रही हैं।

द्वारा दैनिक जागरण 


                          हमारे देश के मंत्रियों में से एक ममता बनर्जी, जिनको देश से ज्यादा खुद कि पड़ी है. ये मंत्री पद सँभालने और जनता का पैसा दबाने में सबसे आगे होते हैं मगर  बस कम-काज करने में सबसे पीछे. और कांग्रेस का क्या है, जब प्रधान मंत्री ही प्रधान मंत्री कि तरह नहीं है तो औरों कि क्या कहें !!!

इसमें जनता कि गलती है , हमारी नहीं



स्टेशन पर भगदड़, दो मरे; रविवार को ऐन वक्त पर बिहार जाने वाली दो ट्रेनों विक्रमशिला और सप्तक्रांती का प्लेटफार्म बदलने से भगदड़ मची जिसमे महिला और एक बच्चे की मौत हो गई तथा 36 लोग घायल हो गए। आठ अस्पताल में भर्ती हैं।

                                                                                                        
  दैनिक जागरण, 17 May 2010


                         लीजिए आ गयी अब दीदी जी की बारी, बोलने के लिए कुछ तो चाहिए. सो बोल दिया बिना सोचे-समझे -- "इसमें जनता कि गलती है, सरकार कि नहीं". मैं बात कर रहा हूँ दो दिन पहले हुए, नई दिल्ली के रेलवे हादसे की. तो ऐसा है कि गाड़ी जिस प्लेटफ़ॉर्म पे आने वाली थी वहां नहीं आ कर आनन-फानन में दुसरे प्लेटफ़ॉर्म पे आ गयी. इस तरह प्लेटफ़ॉर्म बदले जाने से जो भी लोग इन्तेजार कर रहे थे उनकी भगदड़ में दो कि मौत हो गयी. और ऐसा सिर्फ इस लिए हुआ कि रेलवे प्लेटफ़ॉर्म कि अदलाबदली बिना किसी पूर्व सूचना के कि गयी. जिससे बिहार आने वाली दो ट्रेनों के यात्रियों में काफी भगदड़ हुई और परेशानी का सबब बानी.

हर साल ही ऐसा कहीं ना कहीं होता ही है और हर बार सरकार नए नियम कानून बनती ही है. मगर, कानून पे कितना अमल होता है ये तो आप भी जानते हैं और हम भी. मरने वालों को मुआवजा दिया जाता है; लेकिन क्या ये मुआवजा भी सही तरीके से मिलता है या नहीं, किसको पता? किसी के घर का चिराग चला गया..... और अपनी सरकार मुआवजे कि रकम दे कर रुपये से पीड़ितों का मुह बंद करना चाहती है. यानि कि हमारी सरकार पहले से तयार रहती है कि अगर हादसा होता है तो मुआवजा दे कर सबको चुप करा देंगे. और शायद हर किस्म के हादसे के अनुसार मुआवजे के रकम का एक खाका भी तयार होगा. क्या कहें; कहते हुए भी बड़ी शर्म आती है कि बड़ी ढीठ है ये अपनी सरकार. और ऊपर से दीदी जी कहतीं हैं कि "इसमें जनता कि गलती है, सरकार कि नहीं". वाह !! एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी..... बहुत अच्छे.

बात मानने वाली हो या ना हो, लेकिन मेरा मानना है कि लालू जी के रेलमंत्री रहते ये सब नहीं होता था. बहुत से रेलमंत्री आए और गाए. मगर लालू जी के नेतृत्व में जो रेलवे ने तरक्की कि वो शायद कभी नहीं कर पायेगी. इसीलिए कहते हैं ना "जिसका कम उसी को सजे .........". खैर !! जाने दीजिये. अपना कम तो है मरने को तयार रहना और मुआवजे कि रकम पाने के लिए लड़ते रहना.

बिहार पुलिस की कर वसूली


                  बिहार एक बदलता स्वरुप, जिसका पूरा-पूरा श्रेय बिहार के आदरणीय मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार जी को जाता है. ये उन्ही की परिकल्पना है जो की मानसिक और वैचारिक रूप से पिछड़े हुए बिहार की एक नयी तस्वीर हम बिहार वासियों और पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रही है. इसके लिए मैं उनका बहुत-बहुत आभारी हूँ. वैसे तो बिहार का बदलता स्वरुप किसी से छिपा हुआ नहीं है और अब हम बिहारी कहलाने में गर्व महसूस करते हैं. और ये आशा करते हैं की अगर नितीश सरकार को भी लालू सरकार की ही तरह 15 साल की सत्ता मिल जाये तो इसमें तनिक भी संदेह नहीं है की इससे बिहार का उद्धार ही होगा. और बिहार भी महानगरों की गिनती में शामिल होगा.

                          खैर ! ये तो बाद की बात है. अभी, मैं आज बात करने जा रहा हूँ, बिहार पुलिस के कर वसूली के नए अंदाज की. अगर आप नहीं जानते हैं तो बता दूं, बिहार पुलिस ने अपनी आधुनिकता दर्शाने और अपराध जगत पर शिकंजा लगाने हेतु कुछ पदाधिकारियों को मोबाइल पुलिस बना कर उनके हाथों में बाइक(अपाचे) थमा दी है साथ ही 20 लीटर पेट्रोल की भी सुविधा दी है. मतलब, कुछ भी अपने जेब से नहीं लगाना है; चाहे जितना इस पुश्तैनी जायदाद का इस्तेमाल करो. इसका इस्तेमाल सरकारी तौर पर तो, सिर्फ कहने के लिए; ये अपने-अपने एरिया में गश्त लगा कर करते है. मगर, गैर-सरकारी इस्तेमाल की तो कोई सीमा ही नहीं है, क्या-क्या बताऊँ?

                        मैंने ऐसा कोई पहली बार नहीं देखा है; मैं अपने एक मित्र "अमर" के साथ पटना के एक बहुचर्चित इलाके "डाकबंगला" के "मौर्यलोक काम्प्लेक्स" में बात कर रहा था. उस समय करीब दिन के 1-1.30 बजे होंगे. वहीँ एक जूस कॉर्नर(ठेले) पर  दो हट्टे-कट्टे मोबाइल पुलिस के जवान (अपाचे से) आए और जूस बनाने को बोले. आराम से, अपना पुश्तैनी समान समझ कर जूस पिए और बिना पैसे दिए चलते बने. उस समय मेरे पास कैमरा नहीं था, अथवा मैं आपके सामने इस सच्चाई को एक नए रूप में प्रस्तुत करता. भैया पुलिस हैं, तो पैसे किस बात के दें ? क्या, पैसे देने के लिए ही हमें पुलिस बनाया गया है? पुलिस का काम पैसे लेना होता है देना नहीं !! या टेबल के ऊपर से लें या फिर निचे से. और अब तो पुलिस हैं; जो चाहेंगे वो करेंगे. शायद, ऐसे ही कुछ विचार उन दोनों की मानसिकता हों. बस इसी बात की तो गर्मी होती है. और सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि उनके वहां आने से 5 मिनट पहले नितीश जी का कारवां वहीँ से निकला था. ऐसा तो कई बार होता है. अभी कुछ ही दिनों पहले, यहाँ इसी तरह के मोबाइल चालकों के एक दस्ते पे लड़कियों से छेड़खानी करने की शिकायत आयी थी. कई बार, इन्ही लोगों के द्वारा महिलाओं से चेन छीनने की भी घटनाएँ हुई है. ये सही ही कहा गया है कि आज पुलिस, चाहे किसी भी राज्य की हो; वर्दी वाले गुंडे से कम नहीं है.

                            दिक्कत क्या है? दिक्कत सरकार में नहीं, उनके नुमाइंदों में है. एक सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ सरकारी काम-काज में होना चाहिए इसके लिए गाड़ी कार्यालय काल में कार्यालय से निकली जाए और शाम को कार्यकाल समाप्त करके घर जाते वक़्त कार्यालय में लगाई जाए. और जहाँ तक गश्त की बात है, तो वो जीप से हो सकती है. क्योकि, एक जीप में; कितनो के परिवार को अधिकारिक सुख मिल पाएगा?

                           आधुनिकीकरण, काफी जरूरी और अच्छी बात है. अगर, इसका इस्तेमाल सही ढंग से किया जाए तो; जो की नहीं ही होता है. अब उपरोक्त कृत्य का बुरा प्रभाव तो अधीनस्थ सरकार पे ही पड़ेगा. लोगों और छोटे व्यवसाइयों के मन में सरकार के लिए गलत भावना का जन्म होगा जिसका खामियाजा सरकार को चुनाव में उठाना पड़ेगा और फिर शायद बिहार वहीँ होगा जहाँ 15 साल पहले था.

                         क्यूँ ,आप क्या कहते हैं ? अपनी चौपाल में .

अपनी बात



|| श्री गणेशाय नमो नमः ||


 प्रिय मित्रों,
नमस्कार !
 आज मैंने एक नए ब्लॉग का उद्घाटन किया है; जिसका शीर्षक मैंने "अपनी चौपाल" रखा है. जैसा की आप सब जानते हैं; हमारे गॉव में एक चौपाल होती है और लोग वहां बैठ कर आपस में बात-चित करते हैं. इसलिए मैंने इसका शीर्षक "अपनी चौपाल" रखा है. मैं लगभग कुछ, छे महीनों से ब्लॉग लिख रहा हूँ. मेरा पहला ब्लॉग --- http://vkashyaps.blogspot.com है.  इसमें पहले तो मैंने अपने लिखने की शुरुआत आपसी बात-चित से की थी पर मेरी कविता लिखने की भावना ने इस रस्ते को खुद की तरफ मोड़ दिया. जिस कारण मुझे आपने पहले ब्लॉग को कविता के लिए समर्पित करना पड़ा.


अतएव, मैं इस नए ब्लॉग के सहारे, अपनी आपसी बात-चित को आगे बढ़ाना चाहूँगा. इसीलिए मैंने सोंचा है की इस ब्लॉग पे पोस्ट 18 May से शुरू करूँगा........जिसका शीर्षक होगा "बिहार पुलिस की कर वसूली". 


आप सबके समर्थन का इक्षुक,
आपका अपना,
विशाल कश्यप.
 

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